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चलते थे जिनपर | चलते थे जिनपर | ||
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वे सड़कें भी मुड़-तुड़ कर | वे सड़कें भी मुड़-तुड़ कर | ||
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खतम हो गई थी, । | खतम हो गई थी, । | ||
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सब आवाजें | सब आवाजें | ||
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कभी यहाँ, कभी वहाँ –थोड़ी या बहुत देर— | कभी यहाँ, कभी वहाँ –थोड़ी या बहुत देर— | ||
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बोल : सो गई थीं । | बोल : सो गई थीं । | ||
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दोस्त | दोस्त | ||
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सुबह-शाम, रात-रात भर | सुबह-शाम, रात-रात भर | ||
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बातें कर: चुप थे, | बातें कर: चुप थे, | ||
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अब रीते थे । | अब रीते थे । | ||
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और अधिक मादकता, आकुलता, विह्ललता | और अधिक मादकता, आकुलता, विह्ललता | ||
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जगा नहीं पाते थे दिन वे— | जगा नहीं पाते थे दिन वे— | ||
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जो बीते थे। | जो बीते थे। | ||
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हर क्षण जो बढती थी | हर क्षण जो बढती थी | ||
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वही उम्र कहीं, किसी जगह | वही उम्र कहीं, किसी जगह | ||
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रुक गई थी, | रुक गई थी, | ||
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और रात— | और रात— | ||
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पहाड़ी पर : कुछ घंटों के खातिर ? नहीं— | पहाड़ी पर : कुछ घंटों के खातिर ? नहीं— | ||
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सदा-सर्वदा के लिए झुक गई थी । | सदा-सर्वदा के लिए झुक गई थी । | ||
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पेड़ों-पौधों-फूलों का उगना | पेड़ों-पौधों-फूलों का उगना | ||
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बन्द था , | बन्द था , | ||
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पंचम स्वर तक पहुँचा हुआ गीत | पंचम स्वर तक पहुँचा हुआ गीत | ||
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मन्द था। | मन्द था। | ||
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बहुत तेज़ गति से | बहुत तेज़ गति से | ||
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बहनेवाली धारा अब वर्षा की नदी-सदृश | बहनेवाली धारा अब वर्षा की नदी-सदृश | ||
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रेती में खोई थी । | रेती में खोई थी । | ||
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फ़सल : कट-कटा कर, सब | फ़सल : कट-कटा कर, सब | ||
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खतम हो चुकी थी, | खतम हो चुकी थी, | ||
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जो साधों से बोई थी । | जो साधों से बोई थी । | ||
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वह ठहरी-ठहरी वय । | वह ठहरी-ठहरी वय । | ||
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निर्मम जड़ता की जय । | निर्मम जड़ता की जय । | ||
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बहरी स्थिरता का भय्। | बहरी स्थिरता का भय्। | ||
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लहरों-काँटों-चहारदीवारों : | लहरों-काँटों-चहारदीवारों : | ||
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अवरोधों-कुंठा-सीमा-भारों : | अवरोधों-कुंठा-सीमा-भारों : | ||
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का दुर्जर घेरा था । | का दुर्जर घेरा था । | ||
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यह था : जो मेरा था । | यह था : जो मेरा था । | ||
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इसीलिए घेरा तोड़ा मैंने, | इसीलिए घेरा तोड़ा मैंने, | ||
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जो ‘मेरा’ था : वह छोड़ा मैंने । | जो ‘मेरा’ था : वह छोड़ा मैंने । | ||
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नई धवलगात रात , | नई धवलगात रात , | ||
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नवल ज्योति-स्नात प्रात, | नवल ज्योति-स्नात प्रात, | ||
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जाग्रत जीवन, कलरव, | जाग्रत जीवन, कलरव, | ||
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नए जगत, नव अनुभव , | नए जगत, नव अनुभव , | ||
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भिन्न दृश्य, पथ, चित्रों, | भिन्न दृश्य, पथ, चित्रों, | ||
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स्नेही-निश्छ्ल मित्रों | स्नेही-निश्छ्ल मित्रों | ||
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के लिए प्रतीक्षा की । | के लिए प्रतीक्षा की । | ||
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इनसे फिर दीक्षा ली । | इनसे फिर दीक्षा ली । | ||
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20:49, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
चलते थे जिनपर
वे सड़कें भी मुड़-तुड़ कर
खतम हो गई थी, ।
सब आवाजें
कभी यहाँ, कभी वहाँ –थोड़ी या बहुत देर—
बोल : सो गई थीं ।
दोस्त
सुबह-शाम, रात-रात भर
बातें कर: चुप थे,
अब रीते थे ।
और अधिक मादकता, आकुलता, विह्ललता
जगा नहीं पाते थे दिन वे—
जो बीते थे।
हर क्षण जो बढती थी
वही उम्र कहीं, किसी जगह
रुक गई थी,
और रात—
पहाड़ी पर : कुछ घंटों के खातिर ? नहीं—
सदा-सर्वदा के लिए झुक गई थी ।
पेड़ों-पौधों-फूलों का उगना
बन्द था ,
पंचम स्वर तक पहुँचा हुआ गीत
मन्द था।
बहुत तेज़ गति से
बहनेवाली धारा अब वर्षा की नदी-सदृश
रेती में खोई थी ।
फ़सल : कट-कटा कर, सब
खतम हो चुकी थी,
जो साधों से बोई थी ।
वह ठहरी-ठहरी वय ।
निर्मम जड़ता की जय ।
बहरी स्थिरता का भय्।
लहरों-काँटों-चहारदीवारों :
अवरोधों-कुंठा-सीमा-भारों :
का दुर्जर घेरा था ।
यह था : जो मेरा था ।
इसीलिए घेरा तोड़ा मैंने,
जो ‘मेरा’ था : वह छोड़ा मैंने ।
नई धवलगात रात ,
नवल ज्योति-स्नात प्रात,
जाग्रत जीवन, कलरव,
नए जगत, नव अनुभव ,
भिन्न दृश्य, पथ, चित्रों,
स्नेही-निश्छ्ल मित्रों
के लिए प्रतीक्षा की ।
इनसे फिर दीक्षा ली ।