भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पचरंगी चीरा बाँध बीरण / खड़ी बोली" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: बहू की विवशता<br> -पंचरंगी चीरा बाँध कै<br> बीरण मेरा घेरों में बैठ्य...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | बहू की विवशता<br> | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKLokRachna | ||
+ | |रचनाकार=अज्ञात | ||
+ | }} | ||
+ | |||
+ | '''बहू की विवशता<br>''' | ||
-पंचरंगी चीरा बाँध कै<br> | -पंचरंगी चीरा बाँध कै<br> |
17:11, 15 सितम्बर 2008 के समय का अवतरण
♦ रचनाकार: अज्ञात
बहू की विवशता
-पंचरंगी चीरा बाँध कै
बीरण मेरा घेरों में बैठ्या री
हेरी सासू झटपट दे दे न दूध ,
बीरण मेरा निरणों बासी री
हे बहू इतनी क्यों तारै तावळ
-
जलै न ल्हासी दे दो री ।
पंचरंगी चीरा…
-हे री तेरी हाण्डी मैं मारूँ ईंट
भूरी पै चोर लगा दूँ री ।
पंचरंगी चीरा……
हेरी बहू ऐसे न बोल्लै बोल
-
भेज कै नाँव भी नी लेणे की
-
पंचरंगी चीरा……
हे री मैं नौं भाइयों की बाहण
-
भतीजे मेरे बहुत घणै
-
पंचरंगी चीरा……
-हे री वे देंगी अपनी जूठ
जली का पेट भरैगा री
-
पंचरंगी चीरा……