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दिन / अजित कुमार
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19:53, 20 सितम्बर 2008
:बन्धनों को काटकर उठता-
:दिखा गोला
चाँद
चांद
का, ज्यों दहकता शोला ।
:दूर छिटके कई तारे चिनगियों जैसे …
अनिल जनविजय
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