भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अम्मा चली गई / शशिकान्त गीते" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशिकान्त गीते |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
अन्त समय के लिए सहेजा | अन्त समय के लिए सहेजा | ||
गंगा-जल भी नहीं पिया | गंगा-जल भी नहीं पिया | ||
− | + | कितनी तो इच्छा थी लेकिन | |
कोई तीरथ नहीं किया | कोई तीरथ नहीं किया | ||
बेटों पर विश्वास बड़ा था | बेटों पर विश्वास बड़ा था |
20:19, 31 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
पूजा-घर का दीप बुझा है
अम्मा चली गई।
अन्त समय के लिए सहेजा
गंगा-जल भी नहीं पिया
कितनी तो इच्छा थी लेकिन
कोई तीरथ नहीं किया
बेटों पर विश्वास बड़ा था
आख़िर छली गई।
लोहे की सन्दूक खुली
भाभी ने लुगडे छाँट लिए
औ' सुनार से वज़न कराकर
सबने गहने बाँट लिए
फिर उजले संघर्षो पर भी
कालिख मली गई।
रिश्तेदारों की पंचायत
घर की फाँके, चटखारे
उसकी इच्छाओं, हिदायतों
सपनों पर फेरे आरे
देख न पाती बिखरे घर को
अम्मा ! भली गई।