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"है तो है (ग़ज़ल) / दीप्ति मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे  
 
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दोस्त बन कर दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे
 
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फ़िर भी उस जालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है
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फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है
  
  

14:28, 7 अक्टूबर 2008 का अवतरण

वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है

ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से बगावत है तो है


सच को मैने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया

अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है


कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे

ग़ैर न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है


जल गया परवाना तो शम्मा की इसमे क्या खता

रात भर जलना-जलाना उसकी किस्मत है तो है


दोस्त बन कर दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे

फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है


दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ

दूरियों के बाद भी दोनों में कुर्बत है तो है