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किसी की खूबसूरत सादगी पर मैं भी मरता हूँ
हमारी झोपड़ी जलती मेरा गर आशियां जलता तो दोबारा बना लेतामगर ये आग कैसी जिसमें मैं दिन रात जलता हूँ
उदासी से भरी वैसे तो मेरी शाम होती है
मगर उम्मीद लेकर रोज़ ही घर से निकलता हूँ
</poem>
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