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"मौक़ा / श्रीविलास सिंह" के अवतरणों में अंतर

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किसी ग़ुलाम की तरह
 
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शिकारी की सी हड़बड़ी।
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कि वह जी भर देख पाता
 
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फिरा पाता
 
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अपने बेटे की पीठ पर
 
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स्नेह भरा हाथ।
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पर शायद हत्यारों को भी डर है
 
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उनके हृदय पाषाण और  
 
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उनका क्रूर तिलिस्म टूट न जाए  
 
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कविता की पहली दस्तक से ही।
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शायद इसीलिए
 
शायद इसीलिए

19:54, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

इतना भी नहीं है
बस में मौत
कि वह दे सके मोहलत
किसी को
सलीके से मरने की ।

कि वह तैयार कर सके
अपनी चिता और
अपनी समाधि पर चढ़ाने के लिए
फूलों का कर सके
इन्तज़ाम
इत्मिनान से ।

किसी ग़ुलाम की तरह
मौत को तो बस
हुक़्म बजाना है
अपने अज्ञात आका का ।

अपने काम की भी
उसे नहीं कोई तमीज़
नहीं तो उसके हर शिकार में
न दिखती
पहली बार शिकार कर रहे
शिकारी की-सी हड़बड़ी ।

काश ! वह किसी को
इतना भी वक़्त दे पाती
कि वह जी भर देख पाता
अपनी प्रेयसी का मुख
चूम पाता
सो रही अपनी मासूम
बेटी का माथा
फिरा पाता
अपने बेटे की पीठ पर
स्नेह भरा हाथ ।

पर शायद हत्यारों को भी डर है
कि प्रेम की ओस
कहीं कर न दे मुलायम
उनके हृदय पाषाण और
उनका क्रूर तिलिस्म टूट न जाए
कविता की पहली दस्तक से ही ।

शायद इसीलिए
मौत
किसी को भी
नहीं देती मौक़ा
लिखने का
एक आखिरी कविता।