"मुझे डूबना है / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 28: | पंक्ति 28: | ||
'''तू शंकर मेरा, घर पावन-बनारस हुआ। | '''तू शंकर मेरा, घर पावन-बनारस हुआ। | ||
''' | ''' | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
<poem> | <poem> |
18:02, 30 अप्रैल 2021 का अवतरण
तम था, विरह था, विवशताएँ थी,
सोचा था जीवन अमावस हुआ।
बरसों से मन में रखा था छिपाकर,
अब जाके कहने का साहस हुआ।
तेरे नैनो की गंगा में डुबकी लगाकर,
काया कंचन हुई, मन पारस हुआ।
हम पर थे ताने- कि भिक्षुक हैं हम,
तेरे दर पर झुक, जीवन राजस हुआ।
कुछ बूँदे ,जो निर्मल प्रेम की पा लीं,
अभिसिंचित हुए जेठ पावस हुआ।
मैं क्यों कुम्भ जाऊँ, क्यों गंगा नहाऊँ,
आज सवेरे ही तट से पग वापस हुआ।
पतित पावनी तो भीतर बहे है,
अद्भुत प्रेम गोते, आदर्श-मानस हुआ।
मुझे डूबना है, तैरना नहीं है,
अब पार जाने में भारी आलस हुआ।
सुनते थे, प्रेम वासना है तनों की ,
मेरा तन-मन तो प्रेम में तापस हुआ।
तेरा नाम जपते रहे हम निरंतर,
तू शंकर मेरा, घर पावन-बनारस हुआ।