"आती-जाती साँस / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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टूट -टूटकर मैं जुड़ा, झेल- झेल संताप। | टूट -टूटकर मैं जुड़ा, झेल- झेल संताप। | ||
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10:12, 4 मई 2021 का अवतरण
95
रातें कितनी क्रूर हैं, बोती हैं अँधियार।
एक छुअन पल को मिले, रहा भटकता प्यार।।
96
विषधर डँस ले हो सके, इसका हर उपचार।
विष उगलें अपने जहाँ, जीवन है दुश्वार।
97
नौका भी जर्जर हुई, टूट गई पतवार।
चलो चलें उस देश में, जहाँ हमारा प्यार।
98
लौह कलम लेकर लिखा, जीवन का हर भाग।
निशाचरों के देश में, मिले थोक में दाग़ ।
99
शैल शिखर हैं टेरते, घाटी रही पुकार।
आ बसो तुम गोद में, खूब मिलेगा प्यार।
100
खोट नहीं मन में ज़रा, न जीवन में दाग़।
रोम -रोम में बस गए, बनकर तुम अनुराग।
101
मंदिर के खुलते सदा आँगन के सब द्वार।
जिस घर बसता प्रेम है , दर्शन भी दुश्वार।
102
आती जाती साँस-से कहता इतनी बात
हरदम तेरे साथ हूँ, दिन हो चाहे रात।
103
जीवन की पहचान है, आती जाती साँस।
सगा कहें कैसे उसे, जो तोड़े विश्वास।।
104
भला- भला करके मिटे, मिला न फिर भी चैन।
हम डोरी को जोड़ते, वे तोड़ें दिन- रैन।।
105
तुम जीवन -अनुराग हो, तुम मेरा संगीत।
तेरे बिन जगता कहाँ, मेरे मन में गीत।।
106
टूट रहे तट भी सभी, टूट गई पतवार।
हाथ नहीं तुम छोड़ना, जीवन के आधार।
107
पूँजी जीवन की तुम्हीं, बसे तुम्हीं में प्राण।
अंत तुम्हारी गोद में, मिल पाएगा त्राण।।
108
इक छोटा सा दायरा , छोटा- सा घर द्वार।
हमको चाहत है यही , बसे वहाँ पर प्यार।
109
चट्टानों पर धुन रहे, माथा हम दिन रात।
ज्यों तलवारें कर रही , ढालों पर आघात।
110
नदी तोड़ती ही रही ,तट को बारम्बार,
चोट मिली हर पल उसे, तट ने समझा प्यार।
111
टूट -टूटकर मैं जुड़ा, झेल- झेल संताप।
रिश्ते सपने हो गए, अपने केवल आप।
112
तेरी बाहें हैं मुझे, फूलों का वह हार।
बड़ा है तीनो काल से, गुँथा इन्हीं में प्यार।