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"इकलौता नायक / अशोक शाह" के अवतरणों में अंतर

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जितना वे जी पाए
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उतना ही जिया मैंने भी
  
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एक वृक्ष थे पिता
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अडिग और प्रवाहमान
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उनके हौंसलों में घुसकर बनाए हमने
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लम्बी उड़ानों के लिए
  
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वे नदी की तरह बहते थे
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हम उसमें नहाते, आचमन करते
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वे बोतल में बन्द कभी न रहे
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और बाज़ार उन्हें खरीद न सका
  
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हम जगमगाते थे उनके भीतर
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हम नये नक्षत्र उनके
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जन्में थे अभी-अभी
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आकाश की तरह विरल
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जब भी चढ़ती धूप, तपती धरती
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नीम की छाँव की तरह घने हो उठते थे
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पिता हवा की तरह चलते थे
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गर्मी में शीतल बयार लगते
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जरा-सी उमस में जब चमचमा
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आतीं पसीने की बूँदें
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हमारे ललाट की क्षितिज पर
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तब बारिश की तरह बरस जाते
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पिता थे
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समुद्र-सी अकुलाहट को शान्त करते
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छाती जब भी उदासी
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और रिक्त होने लगता मन
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वे मरुत की तरह दौड़ आते
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हर दिशा से
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सिखाया उन्होंने धरती पर कभी न रुकना
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यह तो लगातार घूमती और नाचती है
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आने वाले तारों के लिए
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पृथ्वी की अनूठी गति से ही पैदा होतीं
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गेंहूँ की बालें
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और निकल आते वृक्षों पर सेव के मीठे फल
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उस समय की भूख के लिए
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पिता जब भी होते आँखों से दूर
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दृश्य से अदृश्य
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वे ठिठकते थे
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ढोया मैंने उस ठहराव को दुःख समझ
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और धरती पर गढ़ ली मैंने ही
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पीड़ा की परम्परा अटूट
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पिता हमारे मोक्ष थे
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वे ही जोड़ गये निर्र्जीव को सजीव से
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कब हुए अंतरिक्ष
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पता ही न चला
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पिता आज भी हैं
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मेरे पूर्व जन्मों की कहानी के
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इकलौता नायक
  
 
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14:43, 26 जून 2021 के समय का अवतरण

पिता ही मेरे पूर्व जन्मों की कहानी है
जितना वे जी पाए
उतना ही जिया मैंने भी

एक वृक्ष थे पिता
अडिग और प्रवाहमान
उनके हौंसलों में घुसकर बनाए हमने
छोटे-छोटे घोंसले
लम्बी उड़ानों के लिए

वे नदी की तरह बहते थे
हम उसमें नहाते, आचमन करते
और पी लेते थे उनको
वे बोतल में बन्द कभी न रहे
और बाज़ार उन्हें खरीद न सका

आसमान का घर थे पिता
हम जगमगाते थे उनके भीतर
चाँद-सितारों की तरह
हम नये नक्षत्र उनके
जन्में थे अभी-अभी

पानी की तरह तरल थे
आकाश की तरह विरल
जब भी चढ़ती धूप, तपती धरती
नीम की छाँव की तरह घने हो उठते थे

पिता हवा की तरह चलते थे
गर्मी में शीतल बयार लगते
जरा-सी उमस में जब चमचमा
आतीं पसीने की बूँदें
हमारे ललाट की क्षितिज पर
तब बारिश की तरह बरस जाते
पिता थे

समुद्र-सी अकुलाहट को शान्त करते
छाती जब भी उदासी
और रिक्त होने लगता मन
वे मरुत की तरह दौड़ आते
हर दिशा से

सिखाया उन्होंने धरती पर कभी न रुकना
यह तो लगातार घूमती और नाचती है
आने वाले तारों के लिए
पृथ्वी की अनूठी गति से ही पैदा होतीं
गेंहूँ की बालें
और निकल आते वृक्षों पर सेव के मीठे फल
उस समय की भूख के लिए

पिता जब भी होते आँखों से दूर
दृश्य से अदृश्य
वे ठिठकते थे
ढोया मैंने उस ठहराव को दुःख समझ
और धरती पर गढ़ ली मैंने ही
पीड़ा की परम्परा अटूट

पिता हमारे मोक्ष थे
वे ही जोड़ गये निर्र्जीव को सजीव से
कब हुए अंतरिक्ष
पता ही न चला

पिता आज भी हैं
मेरे पूर्व जन्मों की कहानी के
इकलौता नायक