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दो मिसरे
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रचनाकार | विजय वाते |
---|---|
प्रकाशक | मेधा बुक्स |
वर्ष | २००4 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | |
पृष्ठ | 88 |
ISBN | 81-8166-074-9 |
विविध |
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- ख़ास ज़ुबानी कहता है / विजय वाते
- सपने जैसा लगता है / विजय वाते
- यहाँ क्या कद रहा होता / विजय वाते
- बर्फ के पर्वत पिघलते जाएँगे / विजय वाते
- सब के कुछ समझौते है / विजय वाते
- तुम्हे ज्ञात है / विजय वाते
- आसमानों में छिपा था शायद / विजय वाते
- आईना ही नहीं / विजय वाते
- एक पल एक लम्हा न खोएँगे हम / विजय वाते
- लम्हों की / विजय वाते
- नतीजा नहीं है / विजय वाते
- मतलब ही जुदा हो जाएगा / विजय वाते
- लोरियों तक सभी है शहज़ादे / विजय वाते
- ज़मीं पर तो आइए / विजय वाते
- कितने आसान सबके सफ़र हो गए / विजय वाते
- मर जाती है बात / विजय वाते
- लेकिन खुदा से पूछिए / विजय वाते
- जैसे जैसे हम बड़े होते गए / विजय वाते
- मैं थक कर चूर होना चाहता हूँ / विजय वाते
- बनाते हो बहाने अक्सर / विजय वाते
- तो ग़ज़ल होती है / विजय वाते
- ढलती नहीं कटती नहीं / विजय वाते
- मन भारी है / विजय वाते
- छूकर न जाया करो / विजय वाते
- एक नाज़ुक ख्याल आया है / विजय वाते
- सबकी आँखो का मर गया पानी / विजय वाते
- जिन्दगी हादसों पर भारी है / विजय वाते
- आँख मलते हुए जागती है सुबह / विजय वाते
- भागते-भागते हो गई दोपहर / विजय वाते
- यूँ लगता है यार विजय / विजय वाते
- जाने दे आब यार विजय / विजय वाते
- बड़ी सुस्त घडियाँ / विजय वाते
- तो हम रुकें / विजय वाते
- आज़माना चाहिए / विजय वाते
- दोपहर कैसे बिताना चाहिए / विजय वाते
- कामयाबी गुमान है प्यारे / विजय वाते
- दर्द सारा उलझनों में खो गया / विजय वाते
- लोग झिलमिलाते है / विजय वाते
- अँधेर को अँधेर कहा / विजय वाते
- आओ खुदकुशी कर लें / विजय वाते
- ये तमाशा है खेल है क्या है / विजय वाते
- नम रुमाल हिलाते लोग / विजय वाते
- समंदर था टपका हुआ / विजय वाते
- आँख में सपने नहीं हैं / विजय वाते
- दादी अम्मा कमाल करती है / विजय वाते
- देह धरी हर बार कबीर / विजय वाते
- दर्द से आया कहाँ से / विजय वाते
- हर ग़ज़ल से साथ चलती / विजय वाते
- आओ सोचे हमने आब तक / विजय वाते
- एक पल से एक पल का / विजय वाते