"चमगादड़ / ज्ञानेन्द्रपति" के अवतरणों में अंतर
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12:25, 10 मई 2022 के समय का अवतरण
रात का उड़ता हुआ टुकड़ा
मेरे कमरे में घुस आता है
एक मण्डराता हुआ चमगादड़
कि बाहर बहती अगाध रात की भँवर
श्रवणातीत ध्वनियों का एक तन्तुजाल !
टेढ़ी-मेढ़ी उड़ानों का एक अबूझ पैटर्न !
अकारण ही मेरे शरीर में रोमांच
तारों को छूती हैं जिसकी फुनगियाँ
रात के उसी वृक्ष से लटके हैं चमगादड़
रात के रेशम से बने हैं उनके पँख
रात के रसातल में डूबी है उनकी पहचान
दिन की दुनिया उनके लिए एक दु:स्वप्न
उनकी काया में रात का रक्त
उनकी साँस में रात की साँस
रात की रहस्य-कथा के वे भटकते हुए अक्षर
रात का उड़ता हुआ टुकड़ा
कमरे के बीचोंबीच
अपनी बेचैन परिक्रमाओं के केन्द्र में
गिर पड़ता है
जैसे कि वही हो पृथ्वी के चुम्बक का ध्रुवान्त से सम्मोहित
निस्पन्द
जैसे कि वही हो अमावस्या का अन्तस्तल
आह !
क्या करना है असूर्य लोक से चू पड़े
इस चमगादड़ का ?
किस अतीत में बुहार कर फेंक देना है इसे
क्या करना है ?
कुछ न कुछ तो करना ही है
जो भी करना है जल्द
पता नहीं कहाँ चोट पड़ रही है इस निस्पन्द पड़े चमगादड़ की ।