भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यही रहा जीवन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<poem>
 
<poem>
  
 
+
हमारा तो यही रहा जीवन-
 +
कि
 +
कभी माता पिता के लिए जिए
 +
कभी समर्पित हुए भाई -बहनों के लिए
 +
कभी जीवन साथी को
 +
खुश करने के लिए
 +
अपने सुख को पैताने रख दिया
 +
कभी सन्तान के लिए
 +
अपने सुखों को आश्वासन देकर सुला दिया।
 +
जब अपनी बारी आई,
 +
माता- पिता चले गए
 +
भाई सदा साथ रहे,
 +
अपने  जीवन  में खो गए।
 +
सुत- दारा सब कुछ पाकर भी
 +
खुश न हुए।
 +
और हम आपनी साँसें  भी
 +
अपने ढंग से न ले सके।
 +
एक तुम हो  मेरी प्राणप्रिया
 +
तुझे कुछ न दिया
 +
पर तुमने बीहड़ बन में
 +
मेरा साथ दिया
 +
मेरी योगिनी!
 +
-0-
  
 
</poem>
 
</poem>

12:32, 19 मई 2022 के समय का अवतरण


हमारा तो यही रहा जीवन-
कि
कभी माता पिता के लिए जिए
कभी समर्पित हुए भाई -बहनों के लिए
कभी जीवन साथी को
खुश करने के लिए
अपने सुख को पैताने रख दिया
कभी सन्तान के लिए
अपने सुखों को आश्वासन देकर सुला दिया।
जब अपनी बारी आई,
माता- पिता चले गए
भाई सदा साथ रहे,
अपने जीवन में खो गए।
सुत- दारा सब कुछ पाकर भी
खुश न हुए।
और हम आपनी साँसें भी
अपने ढंग से न ले सके।
एक तुम हो मेरी प्राणप्रिया
तुझे कुछ न दिया
पर तुमने बीहड़ बन में
मेरा साथ दिया
मेरी योगिनी!
-0-