"ग़ज़ल 7-9 / विज्ञान व्रत" के अवतरणों में अंतर
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+ | आप कब किसके नहीं हैं | ||
+ | हम पता रखते नहीं हैं | ||
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+ | जो पता तुम जानते हो | ||
+ | हम वहाँ रहते नहीं हैं | ||
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+ | जानते हैं आपको हम | ||
+ | हाँ मगर कहते नहीं हैं | ||
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+ | जो तसव्वुर था हमारा | ||
+ | आप तो वैसे नहीं हैं | ||
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+ | बात करते हैं हमारी | ||
+ | जो हमें समझे नहीं हैं | ||
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+ | ख़ामुशी ने आपकी | ||
+ | क्यों मुझे आवाज़ दी | ||
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+ | थी ग़ज़ब दीवानगी | ||
+ | उम्र वो कुछ और थी | ||
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+ | आप मुझको हुक्म दें | ||
+ | मैं मिलूँ आकर अभी | ||
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+ | मार डालेगी मुझे | ||
+ | आपकी ये बेरुख़ी | ||
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+ | 'हो चुके हम आपके' | ||
+ | काश कहते आप भी | ||
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09:57, 31 मई 2022 का अवतरण
7
मैं ठिकाना था कभी
वो ज़माना था कभी
आप मेरी जान थे
ये न जाना था कभी
अब हक़ीक़त हूँ यहाँ
इक फ़साना था कभी
मैं अगर नाराज़ था
तो मनाना था कभी
आपका हूँ या नहीं
आज़माना था कभी
8
आप कब किसके नहीं हैं
हम पता रखते नहीं हैं
जो पता तुम जानते हो
हम वहाँ रहते नहीं हैं
जानते हैं आपको हम
हाँ मगर कहते नहीं हैं
जो तसव्वुर था हमारा
आप तो वैसे नहीं हैं
बात करते हैं हमारी
जो हमें समझे नहीं हैं
9
ख़ामुशी ने आपकी
क्यों मुझे आवाज़ दी
थी ग़ज़ब दीवानगी
उम्र वो कुछ और थी
आप मुझको हुक्म दें
मैं मिलूँ आकर अभी
मार डालेगी मुझे
आपकी ये बेरुख़ी
'हो चुके हम आपके'
काश कहते आप भी
-0-