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जब मैं छोटा था तो इक आम चुराने के लिए | जब मैं छोटा था तो इक आम चुराने के लिए | ||
परली दीवार से कंधों पे चढ़ा था उसके | परली दीवार से कंधों पे चढ़ा था उसके | ||
+ | जाने दुखती हुई किस शाख से मेरा पाँव लगा | ||
+ | धाड़ से फेंक दिया था मुझे नीचे उसने | ||
+ | मैंने खुन्नस में बहुत फेंके थे पत्थर उस पर | ||
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+ | मेरी शादी पे मुझे याद है शाखें देकर | ||
+ | मेरी वेदी का हवन गरम किया था उसने | ||
+ | और जब हामला थी बीबा, तो दोपहर में हर दिन | ||
+ | मेरी बीवी की तरफ़ कैरियाँ फेंकी थी उसी ने | ||
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+ | वक़्त के साथ सभी फूल, सभी पत्ते गए | ||
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+ | तब भी लजाता था जब मुन्ने से कहती बीबा | ||
+ | 'हाँ उसी पेड़ से आया है तू, पेड़ का फल है।' | ||
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+ | अब भी लजाता हूँ, जब मोड़ से गुज़रता हूँ | ||
+ | खाँस कर कहता है,"क्यूँ, सर के सभी बाल गए?" | ||
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+ | सुबह से काट रहे हैं वो कमेटी वाले | ||
+ | मोड़ तक जाने की हिम्मत नहीं होती मुझको! | ||
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02:00, 6 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
मोड़ पे देखा है वो बूढ़ा-सा इक आम का पेड़ कभी?
मेरा वाकिफ़ है बहुत सालों से, मैं जानता हूँ
जब मैं छोटा था तो इक आम चुराने के लिए
परली दीवार से कंधों पे चढ़ा था उसके
जाने दुखती हुई किस शाख से मेरा पाँव लगा
धाड़ से फेंक दिया था मुझे नीचे उसने
मैंने खुन्नस में बहुत फेंके थे पत्थर उस पर
मेरी शादी पे मुझे याद है शाखें देकर
मेरी वेदी का हवन गरम किया था उसने
और जब हामला थी बीबा, तो दोपहर में हर दिन
मेरी बीवी की तरफ़ कैरियाँ फेंकी थी उसी ने
वक़्त के साथ सभी फूल, सभी पत्ते गए
तब भी लजाता था जब मुन्ने से कहती बीबा
'हाँ उसी पेड़ से आया है तू, पेड़ का फल है।'
अब भी लजाता हूँ, जब मोड़ से गुज़रता हूँ
खाँस कर कहता है,"क्यूँ, सर के सभी बाल गए?"
सुबह से काट रहे हैं वो कमेटी वाले
मोड़ तक जाने की हिम्मत नहीं होती मुझको!