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शोकगीत / नेहा नरुका
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20:34, 26 जून 2022
और चुपचाप बस्ता लेकर स्कूल निकल जातीं
वे चाँद से न आने की
प्राथनाएँ
प्रार्थनाएँ
करतीं
वे पूरे वक़्त किसी सहेली की तरह सूरज का साथ चाहतीं
उन्हें तारों वाली बाल कविताएँ भद्दी लगतीं
अनिल जनविजय
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