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<poem>
पलेम अपोक्पी, मेरी माँ हैं, जिन्होंने मुझे जन्म दिया,
और मैं एक ऐसा आदमी हूँ, जिसे दस साल पहले तकघर छोड़कर कहीं और जाना ज़रा भी पसन्द नहीं भाता था ।पर अब ये पहाड़ियाँ मुझपर उग आई हैं ।
माँ ! माँ !
मैं अब भी स्वप्निल आँखों वाला तुम्हारा वही बच्चा हूँ
जिसने अपने स्कूली दिनों में, रोज़ ही किसी न किसी से कोई नया रोमांस करते हुए
तुम्हारे जीवन में मुश्किलें पैदा की थीं
जो निक्कर पहनता था, लेकिन इतना मनचला था
कि हर मनपसन्द लड़की से रोमांस करना शुरू कर देता था।
माँ !
तुमने अपने बच्चों को यह समझाया - बताया था
कि समय और पैसे पेड़ों पर नहीं उगते, लेकिन मैं कभी भी उनके साथ रहना नहीं सीख पाया ।
माँ ! ऐसा नहीं है कि मैं भूल गया हूँ कि
तुम मेरे लिए क्या मायने रखती हो
हालाँकि मैं सब कुछ छोड़कर चला आया था
और दूसरों की स्मृति में ख़ुद को
बेहद बौना कर लिया था मैंने ।
हमारे लिए हमेशा चिन्तित रहा करती थीं
तुम्हारे होठों पर कभी एक मुस्कान तक नहीं आई,
अब तुम्हारे चेहरे पर झुर्रियाँ छा गई हैं और तुम्हारे बालों में बर्फ़ सी सफ़ेदी झाँकने लगी हैन। है।
हर रोज़ की तरह तुम आज भी उठी होंगी
सुबह-सवेरे, भोर में, तड़के,
गिरजे की घण्टियाँ बजने से पहले ही
तुमने सारा घर साफ़ किया होगा, फिर तुम नहाई होंगी
और घर में शेष बचे सभी लोगों के लिए खाना बनाया होगा ।
हर शाम मैं तुम्हें देखता हूँ
तुम लौटती हो बाज़ार से,
सिर पर भारी टोकरियों का बोझ लेकर ।
माँ ! मेरे मन में सवाल उठता है —
क्या अब तुम्हें हमेशा हमेशा के लिए सख़्त मेहनत से छुटकारा नहीं पा लेना चाहिए ?
मैं उदास हूँ, माँ पलेम !
मैं तुमसे विरासत में कुछ ले नहीं पाया
न स्थिर जीवन जीने का तुम्हारा तरीका और न खाना पकाने का तुम्हारा कौशल ।
मैं एक छोटा आदमी निकला
जिसके सपने छोटे - छोटे हैं, और जो अपने उन छोटे - छोटे सपनों के साथ
अपना छोटा सा जीवन जी रहा है ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
'''लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी में पढ़िए'''
Robin S Ngangom
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