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+ | काली लड़कियाँ | ||
+ | जिन्हें कुछ सोचकर ही | ||
+ | भगवान मढ़ता है | ||
+ | जिनपर | ||
+ | दूसरा रंग नहीं चढ़ता है | ||
+ | जिनकी उजली आत्मा की | ||
+ | हरियाली जमीन पर | ||
+ | कोमल अहसास का | ||
+ | सावन बरसता है | ||
+ | खिलते हैं मासूमियत के | ||
+ | ढेरों गुलाब | ||
+ | जिनके मन की घाटी में | ||
+ | हरहराती है | ||
+ | दूधिया भावों की एक नदी, | ||
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+ | उनकी जीने की चाह पर | ||
+ | सब पानी फेरते हैं | ||
+ | उन्हें काली- काली कहकर टेरते हैं | ||
+ | फिर भी | ||
+ | काली लड़कियाँ | ||
+ | भरती हैं | ||
+ | लगन की कूँची से | ||
+ | अपने सपनों के कैनवास पे | ||
+ | और चटख रंग | ||
+ | बनाती हैं | ||
+ | अपनी उम्मीदों के आसमान में | ||
+ | इंद्रधनुष | ||
+ | रोपती हैं सब्र की मिट्टी में | ||
+ | बेफ़िक्री का पौधा | ||
+ | रोज सींचती हैं | ||
+ | जो खूब हरा होता जाता है | ||
+ | मगर सबको भाता है | ||
+ | सिर्फ अपना चमकता चेहरा | ||
+ | अपनी खूबसूरती का | ||
+ | दम भरता | ||
+ | कोई उनसे रिश्ता नहीं करता | ||
+ | उन्हें बार- बार | ||
+ | किया जाता है नापसंद | ||
+ | कर दी जाती हैं नज़रबंद | ||
+ | किवाड़ की संद से | ||
+ | झाँकती | ||
+ | काली लड़कियाँ | ||
+ | रह जाती हैं दंग… | ||
+ | देखकर दुनिया का रंग | ||
+ | जब दहेज की चमक में अंधा | ||
+ | उनका हाथ थामता है | ||
+ | तब उनपर | ||
+ | हल्दी चढ़ती है | ||
+ | हाथ पीले होते हैं | ||
+ | माँग में सिंदूर | ||
+ | माथे पर चाँद- सी बिंदिया | ||
+ | सितारों का नूर | ||
+ | सुहाग की लाल साड़ी पहन | ||
+ | दुल्हन बन | ||
+ | घूँघट में | ||
+ | लगती हैं अप्सरा | ||
+ | लेकिन | ||
+ | ससुराल की देहरी पर पाँव धरा | ||
+ | तो लगाते ही शगुन के थाप | ||
+ | मिलता है शाप | ||
+ | दिखता है उन सबका असली रंग | ||
+ | जो बनाकर लाए बहू | ||
+ | जब वे पीते लगते हैं लहू | ||
+ | मेंहदी का रंग उतरने से पहले | ||
+ | सोचकर उनका दिल दहले, | ||
+ | जब भाँप जाती हैं | ||
+ | उन्हें लगाया गया है चूना | ||
+ | काँप जाती हैं | ||
+ | हल्दी लगा चेहरा | ||
+ | हो जाता है | ||
+ | ताँबई | ||
+ | मुँह दिखाई में मिलती है | ||
+ | उपेक्षा | ||
+ | गधे- सी सूरत कहकर चिढ़ाते हैं | ||
+ | कीचड़ में लोटते सफेद सुअर | ||
+ | आँसू भर | ||
+ | बन जाती हैं गान्धारी | ||
+ | बाँध लेती हैं आँखों पर पट्टी | ||
+ | छोड़ देती हैं आशा सारी | ||
+ | निभाती रहती हैं | ||
+ | सात जन्मों का बन्धन | ||
+ | जनती हैं बच्चा | ||
+ | खाती हैं गच्चा | ||
+ | बढ़ाती हैं वंश | ||
+ | झेलती हैं दंश | ||
+ | फिर भी मुस्करातीं | ||
+ | इस बात का मन में ख़याल तक | ||
+ | नहीं लातीं | ||
+ | कि क्यों धीरे- धीरे उनका तन- मन | ||
+ | पीला पड़ जाता है | ||
+ | ससुराल अड़ जाता है | ||
+ | कि ये शादी के बाद का निखार है | ||
+ | पिता इस पूर्वाग्रह पर | ||
+ | साध लेते हैं चुप्पी | ||
+ | माँ सोचके- अब तो कोई नहीं चिढ़ाएगा, | ||
+ | पोंछ लेती है आँखें गीली | ||
+ | और एक दिन | ||
+ | काली लड़कियाँ | ||
+ | पड़ जाती हैं नीली | ||
+ | उन्हें दे दिया जाता है | ||
+ | धीमा जहर | ||
+ | और बसा लिया जाता है | ||
+ | दुबारा घर | ||
+ | उन्हें सफेद चादर ओढ़ाकर | ||
+ | |||
+ | काली लड़कियों की ज़िन्दगी | ||
+ | राख करने वाले | ||
+ | अब खुद भी बाँधेंगे काले धागे | ||
+ | पर उम्र भर | ||
+ | पनप पाएँगे क्या वे अभागे | ||
+ | क्योंकि | ||
+ | खोलतीं किस्मत के ताले | ||
+ | काली लड़कियाँ | ||
+ | काजल का टीका हैं | ||
+ | वो होती हैं अगर | ||
+ | तो घर को नहीं लगती | ||
+ | किसी की भी बुरी नज़र। | ||
+ | -0- | ||
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20:46, 21 नवम्बर 2024 के समय का अवतरण
काली लड़कियाँ
जिन्हें कुछ सोचकर ही
भगवान मढ़ता है
जिनपर
दूसरा रंग नहीं चढ़ता है
जिनकी उजली आत्मा की
हरियाली जमीन पर
कोमल अहसास का
सावन बरसता है
खिलते हैं मासूमियत के
ढेरों गुलाब
जिनके मन की घाटी में
हरहराती है
दूधिया भावों की एक नदी,
उनकी जीने की चाह पर
सब पानी फेरते हैं
उन्हें काली- काली कहकर टेरते हैं
फिर भी
काली लड़कियाँ
भरती हैं
लगन की कूँची से
अपने सपनों के कैनवास पे
और चटख रंग
बनाती हैं
अपनी उम्मीदों के आसमान में
इंद्रधनुष
रोपती हैं सब्र की मिट्टी में
बेफ़िक्री का पौधा
रोज सींचती हैं
जो खूब हरा होता जाता है
मगर सबको भाता है
सिर्फ अपना चमकता चेहरा
अपनी खूबसूरती का
दम भरता
कोई उनसे रिश्ता नहीं करता
उन्हें बार- बार
किया जाता है नापसंद
कर दी जाती हैं नज़रबंद
किवाड़ की संद से
झाँकती
काली लड़कियाँ
रह जाती हैं दंग…
देखकर दुनिया का रंग
जब दहेज की चमक में अंधा
उनका हाथ थामता है
तब उनपर
हल्दी चढ़ती है
हाथ पीले होते हैं
माँग में सिंदूर
माथे पर चाँद- सी बिंदिया
सितारों का नूर
सुहाग की लाल साड़ी पहन
दुल्हन बन
घूँघट में
लगती हैं अप्सरा
लेकिन
ससुराल की देहरी पर पाँव धरा
तो लगाते ही शगुन के थाप
मिलता है शाप
दिखता है उन सबका असली रंग
जो बनाकर लाए बहू
जब वे पीते लगते हैं लहू
मेंहदी का रंग उतरने से पहले
सोचकर उनका दिल दहले,
जब भाँप जाती हैं
उन्हें लगाया गया है चूना
काँप जाती हैं
हल्दी लगा चेहरा
हो जाता है
ताँबई
मुँह दिखाई में मिलती है
उपेक्षा
गधे- सी सूरत कहकर चिढ़ाते हैं
कीचड़ में लोटते सफेद सुअर
आँसू भर
बन जाती हैं गान्धारी
बाँध लेती हैं आँखों पर पट्टी
छोड़ देती हैं आशा सारी
निभाती रहती हैं
सात जन्मों का बन्धन
जनती हैं बच्चा
खाती हैं गच्चा
बढ़ाती हैं वंश
झेलती हैं दंश
फिर भी मुस्करातीं
इस बात का मन में ख़याल तक
नहीं लातीं
कि क्यों धीरे- धीरे उनका तन- मन
पीला पड़ जाता है
ससुराल अड़ जाता है
कि ये शादी के बाद का निखार है
पिता इस पूर्वाग्रह पर
साध लेते हैं चुप्पी
माँ सोचके- अब तो कोई नहीं चिढ़ाएगा,
पोंछ लेती है आँखें गीली
और एक दिन
काली लड़कियाँ
पड़ जाती हैं नीली
उन्हें दे दिया जाता है
धीमा जहर
और बसा लिया जाता है
दुबारा घर
उन्हें सफेद चादर ओढ़ाकर
काली लड़कियों की ज़िन्दगी
राख करने वाले
अब खुद भी बाँधेंगे काले धागे
पर उम्र भर
पनप पाएँगे क्या वे अभागे
क्योंकि
खोलतीं किस्मत के ताले
काली लड़कियाँ
काजल का टीका हैं
वो होती हैं अगर
तो घर को नहीं लगती
किसी की भी बुरी नज़र।
-0-