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दुनियादारों से / अरुण आदित्य
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,
मंगलवार को 00:32 बजे
कि ये लाठी और गठरी ही मेरी दुनिया है
तुमको
मुबारक
मुबारक़
हो तुम्हारी दुनिया
मुझे पड़ा रहने दो अपनी लाठी और गठरी के साथ ।
</poem>
अनिल जनविजय
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