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सबक / सुषमा गुप्ता

935 bytes added, 27 सितम्बर
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बचपन में
जब पिता सिखाते थे
दोस्ती, रिश्ता, मन
बराबर वालों के साथ जोड़ना,
तब नहीं की थी उन्होंने हैसियत की बात
उनका अर्थ था-
इंसान की देह में दिखने वाला
इंसान ही हो
यह ज़रूरी नहीं है
मैंने सही लोगों से
सही सबक सीखने में गलती की
और गलत लोगों ने सिखाए सबक
दंड सहित‌
और अफसोस वह सब सही थे
हम अपने साथ सख्त क्यों नहीं होते!इसलिए समय हमारे साथ सख़्त होता चला जाता है-0-
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