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स्वप्न के उस पार/ प्रताप नारायण सिंह
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रात की तहों में
एक अधखुला दरवाजा था
जहाँ तुम
खड़े थे
खड़ी थी
,
शायद स्मृति और विस्मृति के बीच की
किसी रोशनी में।
Pratap Narayan Singh
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