भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घर / गुरप्रीत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKAnooditRachna | {{KKAnooditRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=गुरप्रीत |
|संग्रह=आज की पंजाबी कविता / सम्पादक-सुभाष नीरव | |संग्रह=आज की पंजाबी कविता / सम्पादक-सुभाष नीरव | ||
}} | }} |
11:48, 4 जून 2009 के समय का अवतरण
|
गुम हुई चीज़ को
तलाशने के लिए
खंगाल डालती थी
घर का हर अंधेरा-तंग कोना
मेरी माँ !
बीवी भी अब ऐसा ही करती है
और अपनी ससुराल में बहन भी !
चीज़ों के गुम होने
और इनके रोने के लिए
अगर घर में अंधेरी-तंग जगहें न होंती
तो घर का नाम भी
घर नहीं होता।
मूल पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव