भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन }} माँ! तुम्हारे सजल आँचल ने धूप से ह...)
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
  
 
माँ!
 
माँ!
 +
 
तुम्हारे सजल आँचल ने
 
तुम्हारे सजल आँचल ने
  

12:24, 3 जनवरी 2009 का अवतरण


माँ!

तुम्हारे सजल आँचल ने

धूप से हमको बचाया है।

चाँदनी का घर बनाया है।


तुम अमृत की धार प्यासों को

ज्योति-रेखा सूरदासों को

संधि को आशीष की कविता

अस्मिता, मन के समासों को


माँ!

तुम्हारे तरल दृगजल ने

तीर्थ-जल का मान पाया है

सो गए मन को जगाया है।


तुम थके मन को अथक लोरी

प्यार से मनुहार की चोरी

नित्य ढुलकाती रहीं हम पर

दूध की दो गागरें कोरी


माँ!

तुम्हारे प्रीति के पल ने

आँसुओं को भी हँसाया है

बोलना मन को सिखाया है।

-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।