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तुम | तुम |
11:12, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
तुम
उस परिन्दे की तरह
कब तक डैने फड़फड़ाओगे
जिसकी गर्दन पर रखा हुआ है
चाहत का चाकू
उड़ान भरने से पहले ही
तुमने खो दिए हैं अपने पंख
प्यास बुझने के पहले ही
विष पी लिया
अमृत पान के लिए
तुम्हारे जैसा कौन मरता है
लालसाओं के जलसाघरों में
तिल-तिल, घुट-घुट कर
न तुम्हें प्रेम करना आया
बहती रही वह
तुम्हारी धमनियों में
रक्त की वर्णमाला की तरह
अलिखित अपरिभाषित
और न तुम्हें घृणा करना आया
जिसे तुम नकटी जदूगरनी
कहते ही उदास होकर रो देते हो
सारा जीवन किसके मायाजाल में
जकड़े रहे
कि अन्त में स्पाइडर की तरह
अपनी ही वासना की चरम परिणति में
आखेट कर लिए गए।