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कला कला के लिए / गोरख पाण्डेय
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14:38, 16 जनवरी 2009
जीवन को ख़ूबसूरत बनाने के लिए
न हो
रोती
रोटी
रोटी के लिए हो
खाने के लिए न हो
फ़ौज के लिए फिर युद्ध हो
फ़िलहाल
कलस
कला
शुद्ध बनी
तहे
रहे
और शुद्ध कला के
पावन प्रभामंडल में
द्विजेन्द्र द्विज
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