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धँसते जा रहे हैं हम | धँसते जा रहे हैं हम |
23:42, 31 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
धँसते जा रहे हैं हम
पहाड़ों से उतरकर
दलदल में
किसे आवाज़ दें रात के इस पहर में
दूर-दूर तक पानी पर
झूल रहा है
आधे कोस का चांद
सन्नाटे में डूब रहे हैं हम