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"मज़दूर / सीमाब अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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इसके दिल तक ज़िन्दगी की रोशनी जती नहीं
 
इसके दिल तक ज़िन्दगी की रोशनी जती नहीं
 
भूल कर भी इसके होंठों तक हसीं आती नहीं.
 
भूल कर भी इसके होंठों तक हसीं आती नहीं.
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मज़रूह: घायल ;  मुज़महिल :
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थका हुआ ;  बामाँदगी: दुर्बलता
 
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14:08, 18 जनवरी 2009 का अवतरण

 
गर्द चेहरे पर, पसीने में जबीं डूबी हई
आँसुओं मे कोहनियों तक आस्तीं डूबी हुई

पीठ पर नाक़ाबिले बरदाश्त इक बारे गिराँ
जोफ़ से लरज़ी हुई सारे बदन की झुर्रियाँ

हड्डियों में तेज़ चलने से चटख़ने की सदा
दर्द में डूबी हुई मजरूह टख़ने की सदा

पाँव मिट्टी की तहों में मैल से चिकटे हुए
एक बदबूदार मैला चीथड़ा बाँधे हुए

जा रहा है जानवर की तरह घबराता हुआ
हाँपता, गिरता,लरज़ता ,ठोकरें खाता हुआ

मुज़महिल बामाँदगी से और फ़ाक़ों से निढाल
चार पैसे की तवक़्क़ोह सारे कुनबे का ख़याल

अपनी ख़िलक़त को गुनाहों की सज़ा समझे हुए
आदमी होने को लानत और बला समझे हुए

इसके दिल तक ज़िन्दगी की रोशनी जती नहीं
भूल कर भी इसके होंठों तक हसीं आती नहीं.

मज़रूह: घायल ; मुज़महिल :
 थका हुआ ; बामाँदगी: दुर्बलता