गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
माचिस की डिबिया / सरोज परमार
No change in size
,
08:44, 28 जनवरी 2009
घासलेट के कुप्पे से सट कर
पी लिया होगा अंधेरा
कुछ तीलियाँ गिराने के एवज
मेम
में
खाया होगा तमाचा मुन्नी ने
कुछ फुस्स हुई कुछ सील गई पड़ी-गली
पल्लू को छू कर
तन्दूरी चिकन बनाया होगा
किसी भरी
-
पूरी लड़की को.
</poem>
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,282
edits