भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पतन पतंग सर्रानी / सोमदत्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: चन्‍दन प्रभु तुम पानी हम प्रभु पानी हम प्रभु उस गड़हे के जिसको रो...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=सोमदत्त
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
<poem>
 
चन्‍दन प्रभु तुम  
 
चन्‍दन प्रभु तुम  
 
पानी हम प्रभु
 
पानी हम प्रभु
पंक्ति 28: पंक्ति 34:
 
हम पानी
 
हम पानी
 
प्रभुजी।
 
प्रभुजी।
 +
</poem>

17:24, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण

चन्‍दन प्रभु तुम
पानी हम प्रभु
पानी हम प्रभु उस गड़हे के
जिसको रोज खोदकर प्रियजन
प्‍यास बुझाते,बंसबेल की अंजर पंजर संतानों की
प्‍यास बुझाते,पूरा पड़ोस गली से गुजरे जजमानों की
पानी हम प्रभु
चंदन तुम प्रभु
चंदन तुम प्रभु उस काठी के
जिसमें व्‍यापा विष सांपों का
सांप चतुर जो दूध पिलाकर बाघों को बिल्लियां बनाते
सांप चतुर जो बीन बजाकर कालबेलियों को नचवाते
सांप चतुर जो मंत्र फूंककर घर में घर घूले खिलवाते
पानी हम प्रभु
पानी हम उस बड़े बांध के
जिसकी जांघ जोत ली तुमने
पानी प्रभु उस कमल नयन के
जिसकी जोत सोख ली तुमने
पानी प्रभु उस बड़वानल के
जिसकी आग तोप दी तुमने
चंदन हम प्रभु
पानी हम प्रभु
पत्‍थर हम प्रभु
प्राणी हम प्रभु
भ्रम की दुर्गिति आंखिन देखी
फिर भी मति बौराना प्रभुजी
तुम चन्‍दन
हम पानी
प्रभुजी।