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"प्रेम (सात कविताएं) / केशव" के अवतरणों में अंतर

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हम
 
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सिर्फ प्रेम में
 
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खोजता हमें
 
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फिर रहता  हममें
 
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जैसे
 
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मछ्ली का घर
 
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पानी
 
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पानी रहता है
 
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मछली
 
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दस्तक
 
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अपना
 
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खत लिखकर भी
 
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रह गया
 
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बोलकर भी चुप
 
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रह गया हो
 
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जैसे कोई
 
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बीच रास्ते से
 
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जैसे
 
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हवा में
 
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अटका रह गया हो
 
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पत्ता कोई
 
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हादसा नहीं
 
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खबर भी नहीं
 
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अखबार के किसी
 
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कोने में चस्पां
 
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एक चुप्पी है
 
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धीरे-धीरे
 
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घटित होती
 
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आत्मा के झुट्पुटे में
 
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खोलती खुद को
 
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तह-दर-तह
 
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फिर छा लेती
 
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पेड़ को जैसे
 
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भीड़ की
 
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रेलमपेल में
 
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खो गया है
 
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आजकल
 
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ढूंढना मुश्किल
 
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भीड़ के छंटने तक
 
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रह जाएगा
 
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कितना शायद
 
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समय की हवा में
 
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एक पत्ता गिरा
 
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जल मय होने तक
  
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03:49, 8 फ़रवरी 2009 का अवतरण

 एक

तुम हो
मैं हूं
प्रेम है

तुम नहीं हो
मैं भी नहीं
तो भी है प्रेम
जीवित हैं
हम
सिर्फ प्रेम में
मृत
प्रेम की स्मृति में

 (दो)

प्रेम

खोजता हमें
प्रेम को
हम नहीं
फिर रहता हममें
जैसे
मछ्ली का घर
पानी
पानी रहता है
पानी
लेकिन हम
मछली
रेत पर

 (तीन)

प्रेम ने दी
दस्तक
हम ही रहे
बेखबर
गुज़र गया जैसे कोई
अपना
पता बता कर

(चार)

खत लिखकर भी
रह गया
दराज में
बोलकर भी चुप
रह गया हो
जैसे कोई
आने को कह्कर भी
लौट गया हो
बीच रास्ते से
जैसे
डाल से
अलग होकर भी
हवा में
अटका रह गया हो
पत्ता कोई

(पांच्)

हादसा नहीं
खबर भी नहीं
अखबार के किसी
कोने में चस्पां
एक चुप्पी है
धीरे-धीरे
घटित होती
आत्मा के झुट्पुटे में
खोलती खुद को
तह-दर-तह
फिर छा लेती
पेड़ को जैसे

(छह)

भीड़ की
रेलमपेल में
खो गया है
आजकल
ढूंढना मुश्किल

भीड़ के छंटने तक
रह जाएगा

कितना शायद
समय की हवा में
उड़ते
एक पीले पत्ते
जितना

(सात)

ठहरे हुए जल में
एक पत्ता गिरा
डूबा
डूबता ही चला गया
जल मय होने तक