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"कुछ तो कहो न / रंजना भाटिया" के अवतरणों में अंतर
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माटी की मूरत जैसे | माटी की मूरत जैसे | ||
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और कुछ बैचेन से | और कुछ बैचेन से | ||
जैसे किसी तलाश में गुम | जैसे किसी तलाश में गुम | ||
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पर न जाने | पर न जाने | ||
तुम अब भी | तुम अब भी | ||
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हो किसी | हो किसी | ||
उधेड़बुन में गुमसुम... | उधेड़बुन में गुमसुम... |
19:18, 12 फ़रवरी 2009 का अवतरण
कुछ तो कहो न
मुझसे तुम
हो क्यों इतने
मायूस से तुम
बरस रही बदरी
यह रिमझिम
फिर भी ..
इतने मौन से तुम
स्तब्ध हो ..
माटी की मूरत जैसे
पर कुछ उद्वेलित
और कुछ बैचेन से
जैसे किसी तलाश में गुम
पा गई मैं तो तुझ में
अपना ठिकाना
पर न जाने
तुम अब भी
उलझे धागों-से
हो किसी
उधेड़बुन में गुमसुम...