"दोहे / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर
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काट-काट तन खाये जो, कहें उसे तनखाह। | काट-काट तन खाये जो, कहें उसे तनखाह। | ||
− | पहली से पहली तलक, चला भागता | + | पहली से पहली तलक, चला भागता जा। |
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− | कहा | + | कहा चिकित्सक ने हमें करो सुरक्षित भोग। |
जितने बढ़ गये डॉकटर,उतने बढ़ गए रोग। | जितने बढ़ गये डॉकटर,उतने बढ़ गए रोग। | ||
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कड़वी छाया नीम की मीठा हर सिंगार। | कड़वी छाया नीम की मीठा हर सिंगार। | ||
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− | बन्दर अदरक खा | + | बन्दर अदरक खा गयो, लुट गयो हमरो नीम। |
− | अरी अभागी भारती, | + | अरी अभागी भारती, तेरे नीम हकीम। |
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पंजीक़ृत अब हो गयी, बरसाती की बास, | पंजीक़ृत अब हो गयी, बरसाती की बास, | ||
− | चावल देहरादून का मालिक है | + | चावल देहरादून का मालिक है टैक्साज़। |
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यश पाया धन भी मिला,बन गयी ब्यूटी क्वीन | यश पाया धन भी मिला,बन गयी ब्यूटी क्वीन | ||
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नीति भई अनीति अब, दलदल बन गये दल। | नीति भई अनीति अब, दलदल बन गये दल। | ||
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− | मस्जिद ढाई ईंट की पाथर तीन। | + | मस्जिद ढाई ईंट की मंदिर पाथर तीन। |
ढाई आखर प्रेम के हमसे लीने छीन। | ढाई आखर प्रेम के हमसे लीने छीन। | ||
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− | + | लोहा ढला जंज़ीर में, खोई सत्य ने धार। | |
दल बदली के बिना अब,चलती नहीं सरकार। | दल बदली के बिना अब,चलती नहीं सरकार। | ||
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मतदाता तो कर गया, अपना मत उपयोग। | मतदाता तो कर गया, अपना मत उपयोग। | ||
नेताजी को गल गया, दलबदली का रोग। | नेताजी को गल गया, दलबदली का रोग। | ||
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− | बोला पंछी बावरा, | + | बोला पंछी बावरा, जीतूंगा संसार। |
जीत लिया संसार तो, पखों ने दी हार। | जीत लिया संसार तो, पखों ने दी हार। | ||
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12:27, 18 फ़रवरी 2009 का अवतरण
कोयल की वाणी गई, बासमती की बास।
केला कड़वा हो गया ग़ुड़ की रही मिठास।
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काट-काट तन खाये जो, कहें उसे तनखाह।
पहली से पहली तलक, चला भागता जा।
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कहा चिकित्सक ने हमें करो सुरक्षित भोग।
जितने बढ़ गये डॉकटर,उतने बढ़ गए रोग।
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पत्नि फीकी लग रही, चटपटी दूजी नार।
कड़वी छाया नीम की मीठा हर सिंगार।
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बन्दर अदरक खा गयो, लुट गयो हमरो नीम।
अरी अभागी भारती, तेरे नीम हकीम।
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पंजीक़ृत अब हो गयी, बरसाती की बास,
चावल देहरादून का मालिक है टैक्साज़।
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यश पाया धन भी मिला,बन गयी ब्यूटी क्वीन
विज्ञापन के खेल में,श्री भी श्री विहीन।
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गली-गली में एक रूपसी, घर-घर में श्रृंगार।
रती सती लंदन चली,कामदेव बेकार।
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दलबदली के दौर में कौन किसी का मीत।
झण्डीवाली कार की तीन लोक में जीत।
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मतदाता को छल गये, आये भिखारी कल।
नीति भई अनीति अब, दलदल बन गये दल।
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मस्जिद ढाई ईंट की मंदिर पाथर तीन।
ढाई आखर प्रेम के हमसे लीने छीन।
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लोहा ढला जंज़ीर में, खोई सत्य ने धार।
दल बदली के बिना अब,चलती नहीं सरकार।
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मतदाता तो कर गया, अपना मत उपयोग।
नेताजी को गल गया, दलबदली का रोग।
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बोला पंछी बावरा, जीतूंगा संसार।
जीत लिया संसार तो, पखों ने दी हार।
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सखियों संग रही भागती, बीत गये दिन चार।
अब डोली आई खड़ी,चलो पिया के द्वार।