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"हरि को ललित बदन निहारु / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर
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निपटही डाँटति निठुर ज्यों लकुट करतें डारु॥ | निपटही डाँटति निठुर ज्यों लकुट करतें डारु॥ | ||
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कान्हहूँ पर सतर भौंहैं, महरि मनहिं बिचारु। | कान्हहूँ पर सतर भौंहैं, महरि मनहिं बिचारु। | ||
दास तुलसी रहति क्यौं रिस निरखि नंद कुमारु॥ | दास तुलसी रहति क्यौं रिस निरखि नंद कुमारु॥ | ||
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23:51, 26 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
हरि को ललित बदन निहारु!
निपटही डाँटति निठुर ज्यों लकुट करतें डारु॥
मंजु अंजन सहित जल-कन चुक्त लोचन-चारु।
स्याम सारस मग मनो ससि स्त्रवत सुधा-सिंगारु॥
सुभग उर,दधि बुंद सुंदर लखि अपनपौ वारु।
मनहुँ मरकत मृदु सिखरपर लसत बिसद तुषारु॥
कान्हहूँ पर सतर भौंहैं, महरि मनहिं बिचारु।
दास तुलसी रहति क्यौं रिस निरखि नंद कुमारु॥