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"हम-तुम / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर
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जीवन कभी सूना न हो | जीवन कभी सूना न हो | ||
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कुछ मैं कहूँ, कुछ तुम कहो। | कुछ मैं कहूँ, कुछ तुम कहो। | ||
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तुमने मुझे अपना लिया | तुमने मुझे अपना लिया | ||
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यह तो बड़ा अच्छा किया | यह तो बड़ा अच्छा किया | ||
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जिस सत्य से मैं दूर था | जिस सत्य से मैं दूर था | ||
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वह पास तुमने ला दिया | वह पास तुमने ला दिया | ||
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अब ज़िन्दगी की धार में | अब ज़िन्दगी की धार में | ||
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कुछ मैं बहूँ, कुछ तुम बहो। | कुछ मैं बहूँ, कुछ तुम बहो। | ||
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जिसका हृदय सुन्दर नहीं | जिसका हृदय सुन्दर नहीं | ||
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मेरे लिए पत्थर वही। | मेरे लिए पत्थर वही। | ||
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मुझको नई गति चाहिए | मुझको नई गति चाहिए | ||
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जैसे मिले वैसे सही। | जैसे मिले वैसे सही। | ||
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मेरी प्रगति की साँस में | मेरी प्रगति की साँस में | ||
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कुछ मैं रहूँ कुछ तुम रहो। | कुछ मैं रहूँ कुछ तुम रहो। | ||
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मुझको बड़ा सा काम दो | मुझको बड़ा सा काम दो | ||
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चाहे न कुछ आराम दो | चाहे न कुछ आराम दो | ||
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लेकिन जहाँ थककर गिरूँ | लेकिन जहाँ थककर गिरूँ | ||
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मुझको वहीं तुम थाम लो। | मुझको वहीं तुम थाम लो। | ||
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गिरते हुए इन्सान को | गिरते हुए इन्सान को | ||
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कुछ मैं गहूँ कुछ तुम गहो। | कुछ मैं गहूँ कुछ तुम गहो। | ||
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संसार मेरा मीत है | संसार मेरा मीत है | ||
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सौंदर्य मेरा गीत है | सौंदर्य मेरा गीत है | ||
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मैंने कभी समझा नहीं | मैंने कभी समझा नहीं | ||
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क्या हार है क्या जीत है | क्या हार है क्या जीत है | ||
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दुख-सुख मुझे जो भी मिले | दुख-सुख मुझे जो भी मिले | ||
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कुछ मैं सहूं कुछ तुम सहो। | कुछ मैं सहूं कुछ तुम सहो। |
06:38, 21 अगस्त 2006 का अवतरण
कवि: रमानाथ अवस्थी
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जीवन कभी सूना न हो
कुछ मैं कहूँ, कुछ तुम कहो।
तुमने मुझे अपना लिया
यह तो बड़ा अच्छा किया
जिस सत्य से मैं दूर था
वह पास तुमने ला दिया
अब ज़िन्दगी की धार में
कुछ मैं बहूँ, कुछ तुम बहो।
जिसका हृदय सुन्दर नहीं
मेरे लिए पत्थर वही।
मुझको नई गति चाहिए
जैसे मिले वैसे सही।
मेरी प्रगति की साँस में
कुछ मैं रहूँ कुछ तुम रहो।
मुझको बड़ा सा काम दो
चाहे न कुछ आराम दो
लेकिन जहाँ थककर गिरूँ
मुझको वहीं तुम थाम लो।
गिरते हुए इन्सान को
कुछ मैं गहूँ कुछ तुम गहो।
संसार मेरा मीत है
सौंदर्य मेरा गीत है
मैंने कभी समझा नहीं
क्या हार है क्या जीत है
दुख-सुख मुझे जो भी मिले
कुछ मैं सहूं कुछ तुम सहो।