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"घाटी की चिन्ता / जगदीश गुप्त" के अवतरणों में अंतर
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इस रसमय धरती की माटी। | इस रसमय धरती की माटी। | ||
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21:42, 21 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
सरिता जल में
पैर डाल कर
आँखें मूंदे, शीश झुकाए
सोच रही है कब से
बादल ओढ़े घाटी।
कितने तीखे अनुतापों को
आघातों को
सहते-सहते
जाने कैसे असह दर्द के बाद-
बन गई होगी पत्थर
इस रसमय धरती की माटी।