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"सेस गनेस महेस दिनेस / रसखान" के अवतरणों में अंतर
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जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥ | जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥ | ||
− | नारद से सुक व्यास | + | नारद से सुक व्यास रटें, पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं। |
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥ | ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥ |
00:34, 7 सितम्बर 2006 का अवतरण
लेखक: रसखान
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सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास रटें, पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥