भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अहिंसा / भारत भूषण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (अहिंसा / भारतभूषण अग्रवाल का नाम बदलकर अहिंसा / भारत भूषण अग्रवाल कर दिया गया है)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कवि: [[भारतभूषण अग्रवाल]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:भारतभूषण अग्रवाल]]
+
|रचनाकार=भारत भूषण अग्रवाल
 
+
}}
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
+
  
 
खाना खा कर कमरे में बिस्तर पर लेटा
 
खाना खा कर कमरे में बिस्तर पर लेटा

18:13, 8 अक्टूबर 2008 का अवतरण

खाना खा कर कमरे में बिस्तर पर लेटा

सोच रहा था मैं मन ही मन : 'हिटलर बेटा

बड़ा मूर्ख है,जो लड़ता है तुच्छ-क्षुद्र मिट्टी के कारण

क्षणभंगुर ही तो है रे ! यह सब वैभव-धन।

अन्त लगेगा हाथ न कुछ, दो दिन का मेला।

लिखूँ एक ख़त, हो जा गाँधी जी का चेला।

वे तुझ को बतलायेंगे आत्मा की सत्ता

होगी प्रकट अहिंसा की तब पूर्ण महत्ता ।

कुछ भी तो है नहीं धरा दुनिया के अन्दर ।'

छत पर से पत्नी चिल्लायी : " दौड़ो , बन्दर !"