Changes

|रचनाकार=अटल बिहारी वाजपेयी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!
क्या खोया, क्या पाया जग में<br>पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानीमिलते और बिछुड़ते मग में<br>जीवन एक अनन्त कहानीमुझे किसी से नहीं शिकायत<br>पर तन की अपनी सीमाएँयद्यपि छला गया पग-पग में<br>सौ शरदों की वाणीएक दृष्टि बीती इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर डालें, यादों की पोटली टटोलेंखुद दरवाज़ा खोलें!<br><br>
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी<br>जीवन एक अनन्त कहानी<br>पर तन की अपनी सीमाएँ<br>यद्यपि सौ शरदों की वाणी<br>इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!<br><br> जन्म-मरण अविरत फेरा<br>जीवन बंजारों का डेरा<br>आज यहाँ, कल कहाँ कूच है<br>कौन जानता किधर सवेरा<br>अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!<br>अपने ही मन से कुछ बोलें!<br><br/poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits