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दो दिलों के दरमियाँ / कुँअर बेचैन
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07:00, 26 अक्टूबर 2012
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|रचनाकार=कुँअर बेचैन
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दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंक
चहचहाती बुलबुलों पर विषबुझे खंजर न फेंक
यह तेरी काँवर नहीं कर्तव्य का अहसास है
अपने कंधे से श्रवण! संबंध का काँवर न फेंक
</poem>
अनिल जनविजय
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