भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यादों की गंध / किशोर काबरा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किशोर काबरा }} <poem> शब्दों का कद कितना छोटा है फिर भ...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=किशोर काबरा | |रचनाकार=किशोर काबरा | ||
− | }} <poem> | + | }} |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
शब्दों का कद कितना छोटा है | शब्दों का कद कितना छोटा है | ||
फिर भी वे | फिर भी वे | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 29: | ||
काँटे में फाँस रहा | काँटे में फाँस रहा | ||
तट का विश्रांत। | तट का विश्रांत। | ||
+ | </poem> |
15:45, 4 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
शब्दों का कद कितना छोटा है
फिर भी वे
नाप रहे कब से वेदांत।
झरता है बादल से नीला आकाश
पेड़ों की अंजुरी से
रिसती है धूप
सूरज की भाषा को कौन पढ़े?
सूर्यमुखी
उपवन में दिखता एकांत।
लोकगीत ओढ़े शरमाते हैं खेत,
तारों से
गुपचुप बतियाते खलिहान
मौसम के कानों में पहनाकर बात
लौटा है
परदेसी प्रांत।
कासों के वन में हैं यादों की गंध,
घाटी में
गर्भवती ध्वनियों के गाँव
जोहड़ में फेंक मरी मछली को
काँटे में फाँस रहा
तट का विश्रांत।