भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रे मन / सोहनलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
 
|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
}}  
+
}}
प्रबल झंझावत में तू <br>
+
{{KKCatKavita}}
बन अचल हिमवान रे मन। <br><br>
+
<poem>
 +
प्रबल झंझावत में तू
 +
बन अचल हिमवान रे मन।  
  
हो बनी गम्भीर रजनी,<br>
+
हो बनी गम्भीर रजनी,  
सूझती हो न अवनी, <br>
+
सूझती हो न अवनी,
ढल न अस्ताचल अतल में <br>
+
ढल न अस्ताचल अतल में  
बन सुवर्ण विहान रे मन। <br><br>
+
बन सुवर्ण विहान रे मन।  
  
उठ रही हो सिन्धु लहरी <br>
+
उठ रही हो सिन्धु लहरी  
हो न मिलती थाह गहरी <br>
+
हो न मिलती थाह गहरी  
नील नीरधि का अकेला <br>
+
नील नीरधि का अकेला  
बन सुभग जलयान रे मन। <br><br>
+
बन सुभग जलयान रे मन।  
  
कमल कलियाँ संकुचित हो,<br>
+
कमल कलियाँ संकुचित हो,  
रश्मियाँ भी बिछलती हो,<br>
+
रश्मियाँ भी बिछलती हो,  
तू तुषार गुहा गहन में <br>
+
तू तुषार गुहा गहन में  
बन मधुप की तान रे मन। <br><br>
+
बन मधुप की तान रे मन।  
 +
</poem>

10:04, 17 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

प्रबल झंझावत में तू
बन अचल हिमवान रे मन।

हो बनी गम्भीर रजनी,
सूझती हो न अवनी,
ढल न अस्ताचल अतल में
बन सुवर्ण विहान रे मन।

उठ रही हो सिन्धु लहरी
हो न मिलती थाह गहरी
नील नीरधि का अकेला
बन सुभग जलयान रे मन।

कमल कलियाँ संकुचित हो,
रश्मियाँ भी बिछलती हो,
तू तुषार गुहा गहन में
बन मधुप की तान रे मन।