भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शारदे / महेश अनघ" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatNavgeet}} | ||
+ | <poem> | ||
मूर्तिवाला शारदे को | मूर्तिवाला शारदे को | ||
20:49, 19 अप्रैल 2011 का अवतरण
मूर्तिवाला शारदे को
हथौड़े से पीटता है
एक काले दिन
कलमुंही तू दो टके की क्यों गई थी कार में
क्या वहां साधक मिलेंगे सेठ में सरकार में
खंडिता हो लौट आई हाथ में बख्शीस लेकर
पर्व वाले दिन
तू फ़कीरों कबीरों के वंश की संतान है
साहबों की साज सज्जा के लिए सामान है
इसलिए कच्चे घरों में ओट देकर तुझे पाला
और टाले दिन
कामना थी पांव तेरे महावर से मांड़ते
फिर किसी दिन पूज्य स्वर से सात फेरे पाड़ते
क्या करें ऊंचे पदों ने पद दलित कर छंद सारे
मार डाले दिन