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20:09, 4 अक्टूबर 2009 का अवतरण
प्रेम क्या किसी मृदूष्ण स्पर्श का भिखारी?
प्रेम वो प्रपात
गीत दिवारात
गा रहा अशान्त
प्रेम आत्म-विस्मृत पर लक्ष्य-च्युत शिकारी ।
प्रेम वह प्रसन्न
खेत में निरन्न
""दुर्भिक्षावसन्न
सृजक कृषक खड़ा दीन अन्नाधिकारी ।