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"धीवरगीत-5 / राधावल्लभ त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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18:50, 17 मई 2009 के समय का अवतरण

रेत में मुरझा रही है नाव
सूखता है सूखा किनारा

देह से झरता पसीना
भाप बनकर उड़ रहा है
वह चाहती है प्रबल धारा

चेतना अटकती है यहीं
दूर से सुन पड़ रहा
स्वर बाँसुरी का