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अनाज / अली सरदार जाफ़री

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|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
|संग्रह=मेरा सफ़र / अली सरदार जाफ़री
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<poem>
मेरी आशिक़ हैं किसानों की हसीं कन्याएँ
जिनके आँचल ने महब्बत मुहब्बत से उठाया मुझको
खेत को साफ़ किया, नर्म किया मिट्टी को
और फिर कोख कोख़ में धरती की सुलाया मुझको
ख़ाक-दर-ख़ाक हर-इक तह में टटोला लेकिन
मौत के ढूँढ़ते हाथों ने न पाया मुझको
कभी बाज़ार में नीलाम चढ़ाया मुझको
कैद रखा कभी लोहे में कभी पत्थर में
कभी गोदामों की क़बरों क़ब्रों में दबाया मुझको
सी के बोरों में मुझे फेंका है तहख़ानों में
चोर बाज़ार कभी रास न आया मुझको
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