भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पैराहन-ए-शरर / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अली सरदार जाफ़री }} <poem> पैराहन-ए-शरर ========= खडा़ है क...)
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
=========
 
=========
  
खडा़ है कौन पैराहन-ए-शरर१ पहने
+
खडा़ है कौन पैराहन-ए-शरर<ref>चिनगारी का परिधान</ref> पहने
 
बदन है चूर तो माथे से ख़ून जारी है
 
बदन है चूर तो माथे से ख़ून जारी है
 
ज़माना गुज़रा कि फ़रहादो-कै़स ख़्त्म हुए
 
ज़माना गुज़रा कि फ़रहादो-कै़स ख़्त्म हुए
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
  
 
कोई दिवाना है, लेता है सच का नाम अब तक
 
कोई दिवाना है, लेता है सच का नाम अब तक
फ़रेबो-मक्र२ को करता नहीं सलाम अब तक
+
फ़रेबो-मक्र<ref>छल-छद्म</ref> को करता नहीं सलाम अब तक
है बात साफ़ सज़ा उसकी संगसारी३ है
+
है बात साफ़ सज़ा उसकी संगसारी<ref>दण्ड का विधान, जिसके अनुसार अपराधी को पत्थर मारे जाते हैं</ref>
 +
है
 
--------------------------------------------------
 
--------------------------------------------------
१.चिनगारी का परिधान २.छल-छद्म ३.दण्ड का विधान, जिसके अनुसार अपराधी को पत्थर मारे जाते हैं।
+
</poem>
<poem>
+

15:47, 23 मई 2009 का अवतरण


पैराहन-ए-शरर
=========

खडा़ है कौन पैराहन-ए-शरर<ref>चिनगारी का परिधान</ref> पहने
बदन है चूर तो माथे से ख़ून जारी है
ज़माना गुज़रा कि फ़रहादो-कै़स ख़्त्म हुए
यह किस पे अहले-जहाँ, हुकमे-संगबारी है
यहाँ तो कोई भी शीरीं-अदा निगार नहीं
यहाँ तो कोई भी लैला-बदन बहार नहीं
यह किसके नाम पे ज़ख़्मों की लाल-कारी है

कोई दिवाना है, लेता है सच का नाम अब तक
फ़रेबो-मक्र<ref>छल-छद्म</ref> को करता नहीं सलाम अब तक
है बात साफ़ सज़ा उसकी संगसारी<ref>दण्ड का विधान, जिसके अनुसार अपराधी को पत्थर मारे जाते हैं</ref>
 है