"आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे / नरेन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा | |रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा | ||
}} | }} | ||
− | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? | + | {{KKCatKavita}} |
− | आज से दो प्रेम योगी, अब वियोगी ही रहेंगे! | + | {{KKCatGeet}} |
− | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? | + | <poem> |
+ | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? | ||
+ | आज से दो प्रेम योगी, अब वियोगी ही रहेंगे! | ||
+ | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? | ||
− | सत्य हो यदि, कल्प की भी कल्पना कर, धीर बांधूँ, | + | सत्य हो यदि, कल्प की भी कल्पना कर, धीर बांधूँ, |
− | किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लिये, यह योग साधूँ! | + | किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लिये, यह योग साधूँ! |
− | जानता हूँ, अब न हम तुम मिल सकेंगे! | + | जानता हूँ, अब न हम तुम मिल सकेंगे! |
− | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? | + | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? |
− | आयेगा मधुमास फिर भी, आयेगी श्यामल घटा घिर, | + | आयेगा मधुमास फिर भी, आयेगी श्यामल घटा घिर, |
− | आँख भर कर देख लो अब, मैं न आऊँगा कभी फिर! | + | आँख भर कर देख लो अब, मैं न आऊँगा कभी फिर! |
− | प्राण तन से बिछुड़ कर कैसे रहेंगे! | + | प्राण तन से बिछुड़ कर कैसे रहेंगे! |
− | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? | + | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? |
− | अब न रोना, व्यर्थ होगा, हर घड़ी आँसू बहाना, | + | अब न रोना, व्यर्थ होगा, हर घड़ी आँसू बहाना, |
− | आज से अपने वियोगी, हृदय को हँसना सिखाना, | + | आज से अपने वियोगी, हृदय को हँसना सिखाना, |
− | अब न हँसने के लिये, हम तुम मिलेंगे! | + | अब न हँसने के लिये, हम तुम मिलेंगे! |
− | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? | + | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? |
− | आज से हम तुम गिनेंगे एक ही नभ के सितारे | + | आज से हम तुम गिनेंगे एक ही नभ के सितारे |
− | दूर होंगे पर सदा को, ज्यों नदी के दो किनारे | + | दूर होंगे पर सदा को, ज्यों नदी के दो किनारे |
− | सिन्धुतट पर भी न दो जो मिल सकेंगे! | + | सिन्धुतट पर भी न दो जो मिल सकेंगे! |
− | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? | + | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? |
− | तट नदी के, भग्न उर के, दो विभागों के सदृश हैं, | + | तट नदी के, भग्न उर के, दो विभागों के सदृश हैं, |
− | चीर जिनको, विश्व की गति बह रही है, वे विवश है! | + | चीर जिनको, विश्व की गति बह रही है, वे विवश है! |
− | आज अथइति पर न पथ में, मिल सकेंगे! | + | आज अथइति पर न पथ में, मिल सकेंगे! |
− | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? | + | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? |
− | यदि मुझे उस पार का भी मिलन का विश्वास होता, | + | यदि मुझे उस पार का भी मिलन का विश्वास होता, |
− | सच कहूँगा, न मैं असहाय या निरुपाय होता, | + | सच कहूँगा, न मैं असहाय या निरुपाय होता, |
− | किन्तु क्या अब स्वप्न में भी मिल सकेंगे? | + | किन्तु क्या अब स्वप्न में भी मिल सकेंगे? |
− | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? | + | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? |
− | आज तक हुआ सच स्वप्न, जिसने स्वप्न देखा? | + | आज तक हुआ सच स्वप्न, जिसने स्वप्न देखा? |
− | कल्पना के मृदुल कर से मिटी किसकी भाग्यरेखा? | + | कल्पना के मृदुल कर से मिटी किसकी भाग्यरेखा? |
− | अब कहाँ सम्भव कि हम फिर मिल सकेंगे! | + | अब कहाँ सम्भव कि हम फिर मिल सकेंगे! |
− | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? | + | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? |
− | आह! अन्तिम रात वह, बैठी रहीं तुम पास मेरे, | + | आह! अन्तिम रात वह, बैठी रहीं तुम पास मेरे, |
− | शीश कांधे पर धरे, घन कुन्तलों से गात घेरे, | + | शीश कांधे पर धरे, घन कुन्तलों से गात घेरे, |
− | क्षीण स्वर में कहा था, "अब कब मिलेंगे?" | + | क्षीण स्वर में कहा था, "अब कब मिलेंगे?" |
− | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? | + | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? |
− | "कब मिलेंगे", पूछ्ता मैं, विश्व से जब विरह कातर, | + | "कब मिलेंगे", पूछ्ता मैं, विश्व से जब विरह कातर, |
− | "कब मिलेंगे", गूँजते प्रतिध्वनिनिनादित व्योम सागर, | + | "कब मिलेंगे", गूँजते प्रतिध्वनिनिनादित व्योम सागर, |
− | "कब मिलेंगे", प्रश्न उत्तर "कब मिलेंगे"! | + | "कब मिलेंगे", प्रश्न उत्तर "कब मिलेंगे"! |
− | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?< | + | आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? |
+ | </poem> |
11:39, 8 दिसम्बर 2009 का अवतरण
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
आज से दो प्रेम योगी, अब वियोगी ही रहेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
सत्य हो यदि, कल्प की भी कल्पना कर, धीर बांधूँ,
किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लिये, यह योग साधूँ!
जानता हूँ, अब न हम तुम मिल सकेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
आयेगा मधुमास फिर भी, आयेगी श्यामल घटा घिर,
आँख भर कर देख लो अब, मैं न आऊँगा कभी फिर!
प्राण तन से बिछुड़ कर कैसे रहेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
अब न रोना, व्यर्थ होगा, हर घड़ी आँसू बहाना,
आज से अपने वियोगी, हृदय को हँसना सिखाना,
अब न हँसने के लिये, हम तुम मिलेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
आज से हम तुम गिनेंगे एक ही नभ के सितारे
दूर होंगे पर सदा को, ज्यों नदी के दो किनारे
सिन्धुतट पर भी न दो जो मिल सकेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
तट नदी के, भग्न उर के, दो विभागों के सदृश हैं,
चीर जिनको, विश्व की गति बह रही है, वे विवश है!
आज अथइति पर न पथ में, मिल सकेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
यदि मुझे उस पार का भी मिलन का विश्वास होता,
सच कहूँगा, न मैं असहाय या निरुपाय होता,
किन्तु क्या अब स्वप्न में भी मिल सकेंगे?
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
आज तक हुआ सच स्वप्न, जिसने स्वप्न देखा?
कल्पना के मृदुल कर से मिटी किसकी भाग्यरेखा?
अब कहाँ सम्भव कि हम फिर मिल सकेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
आह! अन्तिम रात वह, बैठी रहीं तुम पास मेरे,
शीश कांधे पर धरे, घन कुन्तलों से गात घेरे,
क्षीण स्वर में कहा था, "अब कब मिलेंगे?"
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
"कब मिलेंगे", पूछ्ता मैं, विश्व से जब विरह कातर,
"कब मिलेंगे", गूँजते प्रतिध्वनिनिनादित व्योम सागर,
"कब मिलेंगे", प्रश्न उत्तर "कब मिलेंगे"!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?