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|रचनाकार=परवीन शाकिर
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{{KKCatGhazal}}<poem>सब्ज़ मद्धम रोशनी में सुर्ख़ आँचल की धनक <br>सर्द कमरे में मचलती गर्म साँसों की महक <br><br>
बाज़ूओं के सख्त हल्क़े में कोई नाज़ुक बदन <br>सिल्वटें मलबूस पर आँचल भी कुछ ढलका हुआ <br><br>
गर्मी-ए-रुख़्सार से दहकी हुई ठंडी हवा<br>नर्म ज़ुल्फ़ों से मुलायम उँगलियों की छेड़ छाड़<br><br>
सुर्ख़ होंठों पर शरारत के किसी लम्हें का अक्स <br>रेशमी बाहों में चूड़ी की कभी मद्धम धनक <br><br>
शर्मगीं लहजों में धीरे से कभी चाहत की बात <br>दो दिलों की धड़कनों में गूँजती थी एक सदा <br><br>
काँपते होंठों पे थी अल्लाह से सिर्फ़ एक दुआ <br>काश ये लम्हे ठहर जायें ठहर जायें ज़रा <br><br/poem>
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