भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चार शे’र / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अली सरदार जाफ़री }} <poem> '''चार शे’र''' जब से इन्सान क...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
 
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
 
}}
 
}}
 +
[[Category: शेर ]]
 
<poem>
 
<poem>
 
'''चार शे’र'''
 
 
 
 
जब से इन्सान की अज़्मत<Ref>महानता</ref> पे ज़वाल<ref>पतन</ref> आया है
 
जब से इन्सान की अज़्मत<Ref>महानता</ref> पे ज़वाल<ref>पतन</ref> आया है
 
है हर इक बुत को ये दा’वा कि खुदा है जैसे
 
है हर इक बुत को ये दा’वा कि खुदा है जैसे
पंक्ति 19: पंक्ति 16:
 
दिल को इस तरह से छूती है किसी हुस्न की याद
 
दिल को इस तरह से छूती है किसी हुस्न की याद
 
आरिज़े-गुल<ref>फूल का कपोल</ref> पे लबे-बादे-सबा<ref>पुरवा हवा के होंठ</ref> हो जैसे
 
आरिज़े-गुल<ref>फूल का कपोल</ref> पे लबे-बादे-सबा<ref>पुरवा हवा के होंठ</ref> हो जैसे
 
  
 
{{KKMeaning}}
 
{{KKMeaning}}
 
</poem>
 
</poem>

00:06, 6 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

जब से इन्सान की अज़्मत<Ref>महानता</ref> पे ज़वाल<ref>पतन</ref> आया है
है हर इक बुत को ये दा’वा कि खुदा है जैसे

एक आवाज़-सी है वक़्त के सन्नाटे में
दिले-गेती<ref>संसार का दिल</ref> के धड़कने की सदा हो जैसे

है उफ़ुक़-ता-ब-उफ़ुक़<ref>क्षितिज से क्षितिज तक</ref> ख़ूने-शहीदाँ की शफ़क़<ref>लालिमा</ref>
किसी शो’ले के लपकने की अदा हो जैसे

दिल को इस तरह से छूती है किसी हुस्न की याद
आरिज़े-गुल<ref>फूल का कपोल</ref> पे लबे-बादे-सबा<ref>पुरवा हवा के होंठ</ref> हो जैसे

शब्दार्थ
<references/>