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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''हिन्दी कविता का दुःख<br>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''आदमखोर<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अनिल जनविजय]]  
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[शुभा]]  
 
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अच्छे कवियों को सब हिदी वाले नकारते
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आदमखोर उठा लेता है
और बुरे कवियों के सौ-सौ गुण बघारते
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छह साल की बच्ची
ऐसा क्यों है, ये बताएँ ज़रा, भाई अनिल जी
+
लहूलुहान कर देता है उसे
अच्छे कवि क्यों नहीं कहलाते हैं सलिल जी
+
  
क्यों ले-दे कर छपने वाले कवि बने हैं
+
अपना लिंग पोंछता है
क्यों हरी घास को चरने वाले कवि बने हैं
+
और घर पहुँच जाता है
परमानन्द और नवल सरीखे हिन्दी के लोचे
+
मुँह हाथ धोता है और
क्यों देश-विदेश में हिन्दी रचना की छवि बने हैं
+
खाना खाता है
  
क्यों शुक्ला, जोशी, लंठ सरीखे नागर, राठी
+
रहता है बिल्कुल शरीफ़ आदमी की तरह
हिन्दी कविता पर बैठे हैं चढ़ा कर काठी
+
शरीफ़ आदमियों को भी लगता है
पूछ रहे अपने ई-पत्र में सुशील कुमार जी
+
बिल्कुल शरीफ़ आदमी की तरह।
कब बदलेगी हिन्दी कविता की यह परिपाटी
+
 
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13:07, 31 मई 2009 का अवतरण

 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: आदमखोर
  रचनाकार: शुभा

आदमखोर उठा लेता है
छह साल की बच्ची
लहूलुहान कर देता है उसे

अपना लिंग पोंछता है
और घर पहुँच जाता है
मुँह हाथ धोता है और
खाना खाता है

रहता है बिल्कुल शरीफ़ आदमी की तरह
शरीफ़ आदमियों को भी लगता है
बिल्कुल शरीफ़ आदमी की तरह।